नई दिल्ली : नई संसद में सरकार ने ऐतिहासिक महिला आरक्षण विधेयक पेश किया। विधेयक में संसद के निचले सदन, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं को एक तिहाई (33 फीसदी) आरक्षण प्रदान करने का प्रस्ताव है। बिल पेश होने के बाद बीजेपी से लेकर कांग्रेस में इसका क्रेडिट लेने की होड़ मची हुई है। हालांकि, महिला आरक्षण कानून लागू होने में अभी लंबा समय लगने वाला है। महिला आरक्षण और महिलाओं के सशक्त बनने का दावा तो सभी राजनीतिक दल करते हैं लेकिन हकीकत इसके उलट है। चुनाव के समय जब टिकट की बात आती है तो पूरा का पूरा समीकरण ही बदल जाता है। महिलाओं सशक्तिकरण की बात पीछे और जिताऊ उम्मीदवार का मापदंड आगे हो जाता है।लोकसभा चुनाव में टिकट देने में पीछे लोकसभा चुनाव में टिकट देने की बात आती है तो बड़े और राष्ट्रीय राजनीतिक दल पीछे खड़े नजर आते हैं। कांग्रेस, बीजेपी, वाम दलों से लेकर क्षेत्रीय दलों की स्थिति कमोबेश एक ही है। ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और बीजू जनता दल को छोड़ दे तो किसी भी राजनीति दल ने 2014 या 2019 के लोकसभा चुनाव में 20 फीसदी टिकट भी नहीं दिया। इसे हास्यास्पद स्थिति क्या हो सकती है कि कांग्रेस और बीजेपी ने अपने-अपने चुनावी घोषणापत्र में 2019 में महिला के लिए 33 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया था। इसके बावजूद टिकट देने में कहीं भी महिलाओं की समुचित भागीदारी नहीं दिखी थी।बीजेपी ने कुल उम्मीदवारों में 53 महिलाओं को टिकट दिया था। पार्टी ने सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में महिलाओं को उम्मीदवार बनाया था। यूपी में 10, महाराष्ट्र में 7 और गुजरात में 6 महिलाओं को टिकट दिए गए थे। बीजेपी की तरफ से 41 महिला उम्मीदवार चुनाव जीतने में सफल रही थीं। खास बात है कि बीजेपी ने अपने संकल्प पत्र में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए 33% आरक्षण का वादा प्रमुखता से किया था। इससे पहले साल 2014 में बीजेपी ने 428 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। पार्टी ने उस समय महज 38 महिलाओं को टिकट दिया था। वहीं, कांग्रेस ने भी 2019 के लोकसभा चुनाव में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण का वादे का खास तौर पर उल्लेख किया था। इसके उलट पार्टी ने कुल उम्मीदवारों में सिर्फ 54 महिलाओं को टिकट दिया था। इनमें से सिर्फ 6 महिला उम्मीदवार ही चुनाव जीतने में सफल रही थीं। कांग्रेस की तरफ से उत्तर प्रदेश में 12 महिलाओं को टिकट दिए गए थे। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में 8, मध्य प्रदेश में 5 और राजस्थान में 4 महिलाओं कांग्रेस से टिकट पाने वालों में शामिल थीं। साल 2014 में भी कांग्रेस का टिकट देने का प्रतिशत कमोबेश यही था। कांग्रेस ने 464 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे। इनमें 60 सीटों (12.9%) पर महिलाओं को टिकट दिया गया था। टीएमसी ने सबसे अधिक करीब 37 प्रतिशत महिलाओं को टिकट दिया था। टीएमसी के 21 में 9 महिला सांसद चुनाव जीती थीं। वहीं, बीजेडी ने 7 महिलाओं को टिकट दिया था। बीजेडी के 7 में 6 महिलाओं संसद पहुंचने में कामयाब रही थी। बीजेडी ने चुनाव से पहले ही 33 फीसदी महिलाओं को टिकट देने की घोषणा कर दी थी। बाकी क्षेत्रीय दलों ने महज 10.3 फीसदी ही महिला उम्मीदवारों को 10.3% टिकट दिए थे। पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की तुलना में, स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने वाली महिलाओं की संख्या (अनुपात के संदर्भ में) बहुत कम थी। 2019 में अब तक की सबसे अधिक महिलाएं चुनाव जीतकर संसद पहुंची थीं। लोकसभा में 542 सांसदों में से 78 महिलाएं जीती थीं। इनमें सबसे अधिक उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल 11-11 महिलाएं चुनाव जीती थीं। इस तरह 17वीं लोकसभा में 14 प्रतिशत से अधिक महिला सांसद पहुंची थीं। यह 1952 के बाद से सबसे अधिक महिला सांसद थीं। 2014 में 16वीं लोकसभा में 64 महिलाएं जीतीं थीं। वहीं 15वीं लोकसभा के लिए 52 महिलाएं चुनी गईं थीं।