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लोकतंत्र का सच्चा प्रहरी ...

क्या CAA का विरोध कर रहे राज्य अपने यहां इसे लागू होने से रोक सकते हैं

केंद्र सरकार के अधिसूचना जारी करने के बाद नागरिकता संशोधन कानून अब पूरे देश में लागू है, लेकिन विपक्षी पार्टियों की ओर से कुछ राज्यों ने इसे लागू करने से इनकार कर दिया है। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने इस कानून को भारतीय संविधान के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप के खिलाफ बताया है तो तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने भी इसका कड़ा विरोध किया है। स्टालिन ने मंगलवार को कहा कि इसके नियम संविधान की मूल संरचना के खिलाफ हैं। इसके अलावा उन्होंने इस कानून को बीजेपी का विभाजनकारी एजेंडा भी बताया। स्टालिन ने साफ कहा है कि वो इस कानून को अपने राज्य में लागू नहीं होने देंगे। हालांकि सवाल ये है कि ये राज्य भला ही इसका विरोध कर रहे हों लेकिन क्या वो संसद में पारित हुए इस कानून को अपने ज्यों में लागू होने से रोक सकते हैं।संविधान विशेषज्ञ पीडीटी आचारी ऐसा नहीं मानते। वो कहते हैं, ‘संविधान के आर्टिकल 256 के तहत संसद की ओर से पास हुए किसी भी कानून को लागू करने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की ही है। इस आर्टिकल में ये कहा गया है कि राज्य सरकारें अपनी कार्यकारी शक्तियों का इस तरह से इस्तेमाल करें, जिससे कि संसद की ओर से पास किए कानून के लागू होने में कोई दिक्कत ना हो। यहां तक क्रियान्वयन के मामले में केंद्र सरकार जरूरी निर्देश भी दे सकती है। जहां तक कानून लागू किए जाने का सवाल है, कानूनी रूप से राज्य इसे लागू करने के लिए बाध्य हैं।’इसके अलावा जानकारों का ये भी कहना है कि नागरिकता का मामला संघ सूची के तहत आता है, जिस पर संसद ही कानून बना सकती है। दरअसल कानून बनाने के क्षेत्राधिकार के मसले पर संविधान में तीन सूचियों का जिक्र है- संघ सूची, राज्य सूची और समवर्ती सूची। संघ सूची में डिफेंस, विदेश मामले, जनगणना, रेलवे और नागरिकता जैसे मसले आते हैं। जाहिर है इन पर कानून बनाने का अधिकार केवल संसद के पास है। इसके बाद पुलिस, लॉ एंड ऑर्डर, हेल्थ जैसे मामलों पर राज्य सरकारें कानून बना सकती है। इसके अलावा कुछ मामले ऐसे भी हैं, जिनको लेकर केंद्र और राज्य दोनों ही कानून बना सकते हैं, इसमें शिक्षा और शादी और अडॉप्शन जैसे मामले आते हैं।हालांकि समझने वाली बात ये भी है कि केरल की विजयन सरकार ने ना सिर्फ इस कानून का विरोध किया है, बल्कि केरल विधानसभा में इसके खिलाफ एक प्रस्ताव भी पास किया है। साथ ही विजयन सरकार इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा भी खटखटा चुकी है। लेकिन आचारी कहते हैं कि राज्य सरकार की ओर से पारित किए गए इस प्रस्ताव का ज्यादा महत्व नहीं है, क्योंकि संविधान की धारा 256 के मुताबिक किसी भी राज्य सरकार के पास इस कानून के क्रियान्वयन करने में मदद करने के अलावा कोई बहुत विकल्प नहीं हैं। हालांकि वो ये भी कहते हैं कि इस कानून की संवैधानिकता पर सवाल उठाने का अधिकार तो है ही। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को चुनौती देने वाली करीब 156 अर्जियां दायर की जा चुकी हैं, जिन पर सुनवाई होनी बाकी है।

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