• Mon. May 20th, 2024

लोकतंत्र का सच्चा प्रहरी ...

‘बोई काटा-बोई मारा..’ आखातीज के दिन इस शहर में जमकर होती है पतंगबाजी, घरों में बनते हैं खीचड़ा, राबड़ी और इमलानी

राजस्थान के बीकानेर शहर की स्थापना आज से 537 साल पहले अक्सय तृतीया के दिन हुई थी. इसे आखातीज भी कहते हैं. इस दिन बीकानेर शहर के लोग पतंग उड़ाते हैं. भरी गर्मी की परवाह किया बिना हर घर में खूब पतंग बाजी होती है. इस दिन यहां खीचड़ा, राबड़ी एयर इमलानी जैसे पकवान बनाये जाते हैं. इतिहास  के अनुसार बीका को राव जोधा ने जोधपुर राज्य के पैतृक भूमि से वंचित रखकर नए राज्य की स्थापना के लिए उत्तेजित किया, जिस पर राव बीका ने थोड़े से साथियों के साथ मारवाड़ से उत्तर की ओर आकर तत्कालीन जोधपुर राज्य से भी कई गुना बड़े राज्य की स्थापना की, जो भू भाग की दृष्टि से भारत वर्ष के वर्तमान देशी राज्यों में उल्लेखनीय था.बीकाजी बड़े वीर, रणकुशल, पितृ-भक्त और उदार प्रवृति के नरेश थे. जिन्होंने कम समय में बड़े भूभाग को जीतकर अपना नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित करवाया. बीकानेर पर मुसलमान राजा द्वारा सबसे पहला बड़ा आक्रमण राव बीका के पौत्र जैतसिंह के राज्यकाल में हुआ, जिसमें जैतसी ने हुमायूं के भाई कामरान की विशाल सेना को परास्त कर काफी यश प्राप्त किया.इसके बाद जोधपुर के राव मालदेव के साथ लड़ाई में वह मारा गया. जिससे बीकानेर राज्य का अधिकांश भाग जोधपुर के अधिकार में चला गया. गद्दी पर बैठते ही राव कल्याणमल ने अपने शक्तिशाली मित्र बादशाह शेरशाह की मित्रता का लाभ उठाकर उसकी सहायता से जोधपुर में गया राज्य का हिस्सा वापस लिया. यहीं से बीकानेर राज्य का नया युग प्रारंभ माना जाता है. राव कल्याणमल ने मुग़ल सम्राट अकबर के साथ मैत्री स्थापित कर ली, जो मुगलों के पतन तक बनी रही.राव कल्याणमल ने समय-समय पर मुगल-वाहिनी का सफलता पूर्वक संचालन कर अपनी प्रतिष्ठा और यश में अभिवृद्धि की. बीकानेर के नरेशों में से महाराजा अनूपसिंह, गजसिंह और रतनसिंह को मुगल बादशाहों की तरफ से सर्वोच्च सम्मान मिला. जिससे यह मालूम होता है कि मुगलों के राज्य में बीकानेर के नरेशों का स्थान बड़ा ऊंचा रहा. बादशाह औरंगजेब के समय तक बीकानेर राज्य में साहित्य, कला और वैभव का अच्छा विकास हुआ. महाराजा रायसिंह, सूरसिंह, करणसिंह और अनूपसिंह उस समय के बड़े प्रभावशाली राजा हुए जिन्होंने मुग़ल साम्राज्य के निर्माण एवं विकास में अपना योगदान दिया. ये राजा स्वयं साहित्यिक-रुचि रखते थे अत: बीकानेर के साहित्यिक इतिहास में अभिवृद्धि हुई. इनके आश्रय से कई बाहरी विद्वानों ने अनेक अमूल्य ग्रंथों की रचना की. चौतीना, केसरदेसर, सोनगिरी, भय्या, खान्डिया, रतनसागर, खारिया, नयाकुआं, फूलबाई, मोहतां रो (धर्मशाला), मुरली मनोहर (हर्षोलाव, सन्सलाव), चंदनसागर, बेणीसर, पंवारसर, घेरुलाल, जेलवेल, मंडलावतां रो, अजायबघर कनै, माजीसा रो, छींपा रो, अलखसागर, भुट्टा रो, रामसर (गढ़ में) कल्याणसर, राणीसर, गजसागर, रघुनाथसर, वल्लनों रो, कैशोराय रो, ब्रजलालजी रो, जगमण रो, गुसाइयां रो, डागां रो, अमरसर और भुट्टा बास.  सूरसागर, सैंसोलाव, देवीकुंड सागर, कोडमदेसर, शिवबाडी, घड़सीसर, कोलायत, नाथ सागर, हरसोलाव, सतीपुरासागर, फूलनाथ, विश्वकर्मा सागर, महानन्द सागर, रघुनाथ सागर, खरनाडा, धिगल भैरूं, राजरंगा रो, नृसिंह सागर, हिंगलाज, मूंधडा रो, बखतसागर, रंगोलाई, जस्सोलाई, हरोलाई, कंदोलाई, फरसोलाई, गब्बोलाई, धोबी तलाई, मांनजी री तलाई, भट्टोलाई, गोपतलाई, बिन्नाणियां रो तालाब.  जोशीवाड़ा, तेलीवाड़ा, भांभीवाड़ा, बागीनाड़ा, सुनारां री बडी गुवाड़, सुनारां री छोटी गुवाड़, सुथारां री बडी गुवाड़, सुथारां री छोटी गुवाड़, गिन्नाणी, कुचीलपुरा, धोबी तलाई, गूजरां रो, छींपा रो, पींजारां रो, उस्तां रो, पजाबगरां रो, चूनागरां रो, कसायाँ रो, महावतां रो, सिक्कां रो, भिस्तियां रो,  हम्मालां रो, गैरसारियां रो, पठानां रो, रामपुरियां रो, बागडियां रो, डीडू सिपाहियां रो, और दम्मानियाँ रो.  लाभूजी, मालूजी, जोशीजी, सुखलेचा, गोळ कटला, चांदी कटला, चौपड़ा कटला, जैन कटला, खजांची मार्केट, जैन मार्केट, बड़ा बाजार, सुंदर मार्केट, कमला मार्केट, रामपुरिया मार्केट, मेमन मार्केट, मॉडर्न मार्केट, धान मंडी, सब्जी मंडी, फल मंडी, कृषि उपज मंडी और ऊन मंडी.   साहित्य चेतना जाग्रत करने हेतु 1911 ई. में बनी जुबिलि नागरी भण्डार, हिन्दी विश्वभारती अनुसंधान परिषद्, भारतीय विद्यामंदिर शोध संस्थान, श्री सार्दुल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीटयूट, अनोप संस्कृत पुस्तकालय और श्री अभय जैन पुस्तकालय का योगदान रहा.  

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *